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संगठन एवं सदर संवाददाता द्वारा - (भूतपूर्व दूमका उपायुक्त प्रशांत कुमार जी के आदेश का अवहेलना एवं एक वरिष्ठ एवं दलित जाति ‘‘दीन-दलित पत्र‘‘ के प्रधन एवं मुख्य संपादक का घोर अपमान, दूमका पूर्व प्रखण्ड विकास पदाधिकारी द्वारा ) :- जब दुमका (2007) में उपायुक्त प्रशांत कुमार जी थे, यह घटना उसी समय की है। दयनिय , भूमिहीन, असहाय, असमर्थ तथा गरीइी रेखा से नीचे साथ ही दलित जाति और कुष्ठ रोग से ग्रसित होने के कारण एक आवेदन दिए थे। जिस आवेदन पर उपायुक्त प्रशांत कुमार जी द्वारा दो लाख का भुगतान कर देने का आदेश प्रखण्ड विकास पदाधिकारी दुमका को दे दिये थे। जब रजक जी उपायूक्त के आदेश पत्र को साथ लेकर तथा और भी सभी मूल कागजात लेकर अंचल पदाधिकारी दुमका के बडा बाबु के पास जमा दे दिए तभी बडा बाबु ने उन्हें एक सप्ताह के बाद आने के लिए कहकर उनके सभी मूल कागजात को अपने पास रख लिए। बेचारे संपादक जी जो अठ्ठासी वर्ष के बुढे हैं, वे घर चले आए। एक सप्ताह के बाद जब वे बडा बाबु से अपने भुगतान करने के संबंध में पूछने गए तो वे बोले अभी आपका कार्य होने मे थोडा समय लगेगा, सो दो चार – दिनों में फिर आकर मिल लेगें। बेचारे चले आए घर और अंचल के बडा बाबु जो सर का सामने का बाल बिल्कुल ही गायब मतलब चम- चमाचम सर, आज पॉंच वर्ष गुजरने बाले हैं, बडा बाबु का सर (चॉद) ही नहीं पेरे बडा बाबु ही बदले गए और उपायुक्त महोदय प्रशांत कुमार जी को भी धनबाद भेज दिए गए। मतलब उनका भी टा्ंसफर कर दिया गया। अब बेचारे गौरी शंकर जी प्रखण्ड का चक्कर लगा-लगा कर ऐसे चक्करा कर गिरे कि सीधे वे अपने खाट पर असहाय सा मृत्यू के कगार पर पहुॅंच गए। जो आज तक इसी इंतजार में है, कि मेरा भुगतान मिलेगा भी या नहीं या मेरे भुगतान होने से पहले मेरी मृत्यू हो गयी तो क्या होगा। इसी आश में उनके प्राण अटके हुए हैं। आज फिर उसी आवेदन को नवीकृत रूप में सजा कर आद दिलाने हेतु दिनांक 14.10.12 को उपायुक्त दुमका श्री मान हर्ष मंगला जी को दिया गया। लेकिन उस आवेदन का भी कोर्इ जबाब या सूचना अभी तक श्री गौरी जी को नहीं मिला। श्री गौरी शंकर जी बिल्कुल ही हताश हो चुके हैं, तथा उन्हें घोर अपमान के घुॅंट जैसा महसूस होता जा रहा है। शायद उनकी जिंदगी की कीमत प्रशासन ने मजाकिया तौर पर लेने की कोशीश की है। लेकिन यह पूरे प्रशासन की सबसे बडी भूल होगी कि अब रजक जी को भुगतान नहीं देनी पडेगी।