कलम का सिपाही

गौरी शंकर रजक

गौरी शंकर रजक

गाँधी के राहों पर चलने वाले गौरी शंकर रजक (15 जनवरी 1930 – 23 नवम्बर 2012 ) बिहार के दुमका जिले में गिधनी के निवासी थे। उनके पिता स्व0 छेदी रजक एक साधारण व्यवसाय (धोबी) कपडे धोने का काम करता था। माता-पिता के ही कामों में हाथ बटाती एवं घर का काम करतीं। गौरीषंकर ने जब से होष सम्भाला पिता के ही कामों में हाथ बटाया करते। थोडा बहुत समय बचता तो अन्य बच्चों की तरह यह भी कभी-कभी स्कूल जाते। इन्होंने अपने पिता के कामों में सहयोग करके किसी भी तरह से 10वीं की पढाई  में पूरी की।

इन्होंने अपने जीवन काल में देखा की पीछडों एवं दलीतों पर सरकारी अॅफसरों से लेकर समाज के ऊँचे वर्ग भी इनके साथ बदसुलकी से पेश आते हैं। एक बार किसी काम से सरकारी दफतर का चक्कर लगाते कई दिन बीत गया उसने बडे अफसरों से भी गुहार लगाई सिर्फ आसवासन के अलावा उसे कुछ न मिला। वहीं उसकी मुलाकात एक पत्रकार कर्मी से हुई, उन्होंने बताया की यहाँ बडे लोगों की सुनी जाती है, यदि तुम्हें कुछ करना है, तो बडे बनो।

इस घटना ने इनके जीवन को झकझोर कर रख दिया। उसी दिन से मन में वह ठान लीया की मुझे कुछ करना है। वह अफसरों की मनमानी के खिलाफ प्रचार-प्रसार करने में जुट गए। हाथों से लिखकर अॅफसरों की मनमानी को लोगों तक उजागर करने लगे। बिहार के मुख्यमंत्री चंद्रषेखर जी उसे हिन्दी पत्रिका निकालने का अनुमति दिया। हस्त लिखित प्रत्रिका से दुमका के उपायुक्त से लेकर जिला प्रसाषन को अवगत कराया लेकिन किसी ने इसे निबंधित पत्रिका का दर्जा न देते हुए मान्यता नहीं दी। फिर उन्होंनें देश के तत्कालीन राश्ट्पती श्री के0 आर0 नारायण को पत्र लिखकर अपनी पीडा जतायी। राष्ट्रपति के0 आर0 नारायण ने 15 दिनों के अंदर दीन दलित पत्रिका को साप्ताहीक अखबार का दर्जा 02.11.1986 को दिया।

एक बार गाँधी जी के जन्म दिवस पर एक कार्यक्रम में वह बैठ गए। वहाँ उनको मैले कुचले कपडों में देखकर कुछ लोगों ने धक्के देकर बाहर कर दिया। इस घटना को उन्होंने अपने समाचार के माध्यम से उजागर किया। प्रसाषन की नींद तब खुली जब दिल्ली से बडे अफसरों का फोन आया कि कौन इनको अपमानित करके उत्सव से बाहर निकाला। दुमका उपायुक्त ने उनको तुरंत बुलाकर उनसे यह बात कहलवाने के लिए कि मुझे किसी ने अपमानित नहीं किया मैं अपने आप से बाहर कोई काम के लिए गया। गौरी षंकर ने यहाँ भी अपने आप को गाँधी की तरह दया के भाव को उजागर किया।

गौरी शंकर रजक ने लगातार 1986 से लेकर आज तक हाथों से लिखकर दीन दलित समाचार पत्र को प्रकाषित करते आ रहे हैं। सरकार के पास लगभग 4 लाख रुपये इनके संपादीकिय मुआवजा 22 वर्शों का बाकी है। कई बार इन्होने गुहार लगाई लेकिन आष्वासन के आलावा इन्हें कुछ नही मिला।

अपने जीवन को संघर्शशील बनाते हुए और निरंतर समाज के ज्वलंत मुदों को लेकर कौन मिटायेगा आतंकवाद? कैसे मिटेगा भ्रश्टाचार? झारखण्ड के ग्रामीण समाचारों से ओत-प्रोत दीन दलित के संपांदक श्री गौरी शंकर रजक को अंतराष्ट्रीय प्रेस दिवस 2008  के मौके पर जनमत मीडिया आवार्ड से सम्मानित किया गया।

बार-बार सुर्खियों में रहे कलम के सिपाही गौरी षंकर रजक का वर्तमान में आर्थिक दषा काफि दयनिय हो गयी है। समाज की अवाज को उठाने वाले, समाज की सेवा करने वाले का दुःख और दर्द कोई नहीं सुनता है।