भ्रष्टाचार एक दीमक की तरह पूरे राज्य एवं देष को खोखला कर रही है, प्रस्तुत है भ्रष्टाचार को एक कविता
मेरा देष महान (भ्रष्टाचार की जड़)
मेरे देष के कुछ नेता है भ्रष्टाचार और मंहगाई की जड़।
जनता को दिखावे के लिए उनकी शरीर की एक धड़।।
अब देखिए नेताओं की खता।
वही हर जगर देखेगी गलती को सही।।
जब बढ़ती है मजदूरों की दैनिक वेतन।
वे हो जाते है खुष।।
लेकिन दूसरे दि नही बढ़ा दी जाती है।
अनाजों और डिजलों के दाम।।
क्योंकि उन्हीं के हाथों में होती है।
पूरे भारत देष की लगाम।।
वे जैसे भी चाहे क्षण में।
बना दे माला-माल।।
उनके नजर में तो सारा।
भारत ही है गरीबों की जंजाल।।
पूरे देष की जनता को।
अब होगी सजग।।
फिर देखिए पूर्ण भारत ही।
करेगा जग-मग-जग-मग।।
अब जनता की नाक से।
उतर आ गई है।।
उन नेताओं के जालसाजी
की पानी।।
अब मत बनाने की किजिए कोषिष
पूरे भारत देष की नानी।
गरीबों के चलते ही होती।
नेताओं की कमाई।।
अंक- ११७२ पेज ३
– Posted on April 9, 2015Posted in: पिछला संस्करण