अंक- ११४९ पेज २

02दल को आगे कर चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ। जब किसी गठबंधन के सहयोगी दल एक जैसी राजनीतिक ताकत हासिल कर ले तो फिर होना यह चाहिए कि वे आधी-आधी सीटों पर चुनाव लड़े। इसके बाद जिस दल की अधिक सिटें मिले वह मुख्यमुंत्राी पद का दावेदार बने या फिर दोनों दल आधे-आधे समय के लिए सरकार का नेतृत्व करें। यह एक आसान सा फार्मूला मान्य होना चाहिए था, लेकिन अपने देष में किसी की भी दिलचस्पी इसमें नहीं कि गठबंधन राजनीतिक के कोई तौर तरीके और वे प्रभावी हो। भले ही चुनाव के बाद भाजपा राष्ट्रवादी काॅग्रेस पार्टी का साथ लेने की संभावना का खारिज कर दिया हो, लेकिन राजनीतिक में कुछ भी हो सकता है। आष्चर्य नहीं कि चुनाव के बाद गठबंधन फिर से करीब आ जाए। वैसे भी सत्ता का लालच बाद गठबंधन को तोड़ता भी है और जोड़ता भी है। यह कहना कठिन है कि टूट कर षिकार सभी दलों यह समझ सकेगें कि गठबंधन उस तरह से नहीं चलाए जा सकते जैसे कि चलाने की कोषिष की जा रही र्थाी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दलों को एक-दूसरे का सम्मान करना चाहिए और उन भरोसा भी करना चाहिए। यदि राष्ट्रवादी काॅग्रेस पार्टी कांग्रेस के प्रति अनावष्यक उग्रता दिखा रही थी तो यही काम षिवसेना भाजपा के संदर्भ में कर रही थी। षिवसेना के रवैया को देखते हुए इस पर यकीन करना मुष्किल है कि वह भाजपा के साथ मिलकर सरकार चला सकती है।