ऐसा लगता है कि यह आयोजन इसलिए किया जा रहा है क्योंकि भाजपा भी इसी मुद्दे को लेकर रेल यातायात रोकने जा रही है। बिहार के साथ-साथ अन्य राज्यों की विषेष दर्जे की मांग में कुछ वनज हो सकता है और है भी, लेकिन जो भी राजनितिक दल यह मांग कर रहे है उन्हे यह पता होना चाहिए िकइस तरह की मांगों को राजनितिक स्वरूप देने से मुष्किल से ही कुछ हाथ लगता हैं। केन्द्र सरकार द्वारा झारखण्ड की मांग को दरकिनार कर सीमाध्रं को इस दर्जा से नवाजा जाना राज्य विधानसभा के सदस्यों को भी अखर गया है। पिछड़ेपन से ग्रस्त राज्यों की आर्थिक समस्याओं की अनदेखी नही की जा सकती, लेकिन यह भी सही है िकइस तरह की मांगों पर राजनितिक द्वष्टि से विचार करने से कोई मतलब नहीं है। यह किसी से छिपा नहीं कि कई बार कुछ राज्यों के साथ केन्द्र सरकार इसलिए उदारता का परिचय देती है, क्योंकि राजनितिक हितों की पूर्ति की जा सकें। बेहतर हो कि ऐसी कोई व्यवस्था बने जिससे राज्यों के पिछड़ेपन दूर हो जाए और इस मामले पर दिखावे की राजनितिक भी बंद हो सकें। जब तक ऐसा नहीं होता तब तक न तो राज्यों के पिछड़ेपन को दूर करने की सही राह तैयार हो सकती है और न ही पिछड़ेपन की आड़ में राजनितिक किए जाने का सिलसिला समाप्त होगा। दीन-दलित पत्रा।
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– Posted on January 29, 2015Posted in: पिछला संस्करण