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01संसदीय जीवन : 13 फरवरी 2014 को सदन के अंदर एक शर्मनाक घटना घटी जिससे देष की हर कान में यही गुंज रहा है कि अब संसदीय जीवन का एक ही हेेतु रह गया है। कि सदन के अंदर कुछ भी ऐसा किया जाए जो अगले दिन सुर्खियों में आ जाय। क्या चुनाव जितने के लिए कुछ कना उचित है? सांसदों में भी ऐसे अंहकारी लोगों की संख्या घटने की बजाय लगातार बढ़ती गई है। जिनके पास आकृत संपदा और ऐष्वर्य है, सड़क छाप अराजकता की प्रतिष्ठा और उसे