संगठन के स्तर पर बदलाव लाकर माहौल बदलने का रणनीतिकार यह समझे कि सरकार मे बदलाव बदलने का समय बित चुका ह। चिडि़या खेत चुक चुकी। अगर चेहरे बदलने से पार्टी की छवि में कोई बदलाव होती है तो ऐसा न जाने कब हो जाता। यह भी किसी से छिपा नहीं है, कि कांग्रेस उपाध्यक्ष के रूप् में राहुल गांधी ने संगठन के कामकाज के तौर-तरीकों को बदलने के लिए जो अभियान षुरू किया गया था वह अंजाम तक नहीं पहुंच सका। चुनाव प्रचार के दौरान कांगे्रस नेता अपने राजनीतिक विरोधियों पर किस्म-किस्म के आरोप लगाते रहे। लेकिन वे इस सवाल का जवाब देने में नाकाम रहे कि महंगाई और भ्रष्टाचार पर लगाम क्यों नहीं लग सकी? एक खास बात यह भी हुई कि कांग्रेस के नेताओं ने विकास को एक नए नजरिये से परिभाषित करना षुरू कर दिया है। उन्होंने आम जनता को यह समझाने की कोषिष की कि सड़को का निर्माण अथवा नए उद्योगों की स्थापना से आम जनता और विषेष रूप से निर्धन-वंचित वर्ग को कुछ भी हासिल नहीं होनेवाला। इतना ही नहीं कांगे्रस एक नए किस्म के समाजवाद को भी अपनाती दिखी और इसके तहत गरीबों को तरह-तरह की रियायते देने की तैयारी को जाने लगी। यह आष्चर्यजनक है कि कांगे्रस की नेतृत्व ने इस पर कभी विचार क्यों नहीं किया कि जनता को केन्द्रीय सत्ता की असफलताओं का जवाब देना ही होगा। खाद्य सुखा कानून इसी सोच का नतीजा हैं। बेहतर हो कि कांग्रेस यह समझे कि समय के साथ बहुत कुछ बदल चुका है और आम जनता खोखले नारों और रियायतों-रेवडि़यों से सतुष्ट नहीं होने वाली। (दीन-दलित, बबलू रजक)
अंक- ११०७ Page-२
– Posted on January 11, 2014Posted in: पिछला संस्करण