अंक- १०८५ Page-२

स्कूलों में मिड डे मील खाने वाले बच्चे आम तौर पर समाज के सबसे निचे (कमजोर) वर्ग के आते है इसलिए वे ही इसे खाने का खतरा उठाते है वह बच्चे यह नहीं जानते है इस खाने में क्या है सिर्फ अपना पेट को देखते है। यह सिर्फ स्थानीय प्रषासन के लिए ही शर्मनाक है बल्कि पुरे देष के लिए ग्लानि के विषय है, भारत में तमाम सरकारी कामकाज में लापरवाह आम है। और हम इसके लिए आदि हो चुके है इनके जितना दोषी सरकार है उतना ही आम जनता भी इस दोषी के हकदार है। जो लोग आर्थिक रूप से बेहतर है वे अपने लिए इस तंत्रा के बेहतर सुविधाए पा लेते है इसलिए इस तंत्रा की लापरवाही और संवेदनषील की मार सबसे गरीब पर पड़ती है। ऐसा नहीं है कि मिड डे मील कार्यक्रम गड़बडि़यों को सुधारने की काषिष नहीं की गई, ये कोषिष इसलिए सफल साबित नहीं हुई, क्योंकि इस कार्यक्रम का जिम्मेवारी जिन लोगों पर हैं उन्हें ही इस कार्यक्रम पर यकीन नहीं है। अगर यह योजना बच्चों का सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं बल्कि उनके लिए अच्छा पोषण सुनिष्चित करने के लिए है तो इसमें सबसे ज्यादा ध्यान खाने की गुणवत्ता पर दिया जाना चाहिए। जो हुआ वह निष्चिय ही बड़ी दुर्घटना है, लेकिन खाने में बुरे स्तर के बारे में लगातार घटना घटती रहती है, ऐसी घटना को विषेष कर कुछ न कुछ उपाय सोचा जाए और उससे निपटाने की प्रयास कि जाना चाहिए। इसमें इतना भ्रष्टाचार और लापरवाही हैं कि कही अगर अच्छा और साफ-सुथरा खाना बच्चों को मिल रहा है तो यह अपवाद है। जो राजनेता इस घटना पर बयानबाजी करके राजनैतिक लाभ लेना चाहते है