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क्यों कि ये लोग पहाडि़या समुदाय के लोगों द्वारा किए जा रहे लूट-पाट से काफी प्रस्त थे। इन लोगों के साथ संतालों का समाजिक और धार्मिकक संबंध कायम होना प्रारम्भ हुआ और कुछ समय बाद ये एक दूसरे घुल मिल गए। धर्म, रिति-रिवाज, पूजा-पाठ, षादी-विवाह, संस्कार आदि अनेकों मामलों में आपसी व्यवहार से इनकी सभ्यता और संस्कृति गंभीर रूप् से प्रभावित हुई महत्वपूर्ण तथ्य है कि वे सभी लोग आदिवासी समुदाय और निचले वर्ग के थे। लगभग 1850 ईõ के बाद पहाडि़या समुदाय के लोगों के साथ भी इनका मेल जोल हो गया। फलतः समाजिक विभेद और तनाव के लक्षणों केा लोप हो गया। इन आदिवासियों की उत्पत्ति समाज और धर्म आदि से जुड़ी परम्पराओं में सामाजिक विभेद का उल्लेख नहीं है। संतालों के समाज, धर्म उत्पत्ति आदि से जुड़ी परम्पराओं में भी सामाजिक विभेद का उल्लेख नहीं है। संतालों के समाज, धर्म उत्पत्ति आदि से जुड़ी परम्पराओं मंे भी सामाजिक विभेद का उल्लेख नहीं है। दिकु अवधारणा का वर्णन भी नहीं है। वासियों द्वारा षोसन होने लगा तो इस पूरे क्षेत्रा में आदिवासी और गैर-आदिवासी की भावना का जन्म हुआ। इसी भावना से दिकु अवधारण की उत्पत्ति हुई जिसे अंग्रेज अधिकारियों ने काफी प्रोत्साहित किया। क्यूँ कि उन्हें भी अपने समुदाय को गैर – आदिवासियों से अलग रखना था, क्यों कि उनके अलग रखने में ही उन्हें हर तरह से ही फायदा था। संताल बिद्रोह 1855-56 के ईसाई मत में दीक्षित संताल ऐसा प्रतित होता है, कि संतालों में दीकु अवधारना की उत्पत्ति मूल रूप से ब्रिटिष प्रषासन और वाष्ेचाल्य संस्कृति की देन है। इस तथ्यों को अंग्रेजों की ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के रूप में देखना चाहिए। जनता के कल्याण के नाम पर ब्रिटिष सरकार के अधिकारियों द्वारा लागू की गयी व्यवस्थाओं के सामाजिक विभेद और तनाव की बीज छिपी हुई हैं। षब्द व्युत्पत्ति के आधार पर दिकु का तात्पर्य यह है, कि जो व्यक्ति दिक्कत (परेषान) करता है, और कष्ट पहुँचाता है। उसे ही दिकु कहा गया है, वस्तुतः संतालों के साथ अधिक दिक-दिक करने बाले व्यक्ति को दिकु कहा गया। संतालों का षोषण और परेषान करने वाले अधिकांष गैर आदिवासी समुदाय के लोग हुआ करते थे। इसलिए दिकु अवधारणा का तात्पर्य गैर आदिवासी और आर्थिक षोषण किया करते थे। सन् 1855-56 में सिदो कान्हु के नेतृत्व में संथाल बिद्रोह के पूर्व इस अवधारणा में पुनः परिवर्तन हुआ और विदेषी समुदाय एवं विदेषी षासन के अधिकारी भी दिकु अवधारणा के अन्तरगत आ गए। 1855-56 में संतालों ने महाजन एवं जमींदारों के साथ-साथ अंग्रज अधिकारियों और विदेषी प्रषासन के खिलाफ भी बिद्रोह किया गया। साफा होड़ आन्दोलन भी षुरू हो गया था। ईसाई मत के प्रचार-प्रसार और खरवार आन्दोलन की प्रगति से दिकु अवधारणा बलवती हुई । अन्ततः संताली के दिल और दिमाग दिकु अवधारणा पूरी तरह स्थापित हो गई। इस प्रकार दिकु अवधारणा संतालों के विचार धारा में षामिल हो गयी।