अंक- १०७६ Page-४

संताल इस लिखित ब्यान के आधार पर संताल (आदिवासी) खुद यहाँ इस देष भारत के निवासी ही नहीं हैं, तो फिर उन्हें मूल निवासी होने का दर्जा कैसे मिला, और फिर गैर आदिवासियों (दिकु) से 1932 का खतियान की माँग ही क्यूँ कि जाती है, जाति $ निवासी $ आय $ कुर्सी नामा प्रमाण पत्रा बनवाने वक्त। यह तो सरासर ही दादागिरि ही कही जा सकती है। मैं पूरे प्रषासन से निवेदन पूर्वक कहना चाहता हूँ, कि इस तरह गैर आदिवासियों (दिकु) एवं उनके बच्चों की भविष्य को देखते हुए, यथा-षिघ्र ही बाबुलाल मराण्डी जी द्वारा चलाए गए, डोमिसाईल नीति को रद्ध करते हुए संवैधानिक अधिकार के तहत सभी को बराबर का दर्जा दें एवं गैर आदिवासियों के बच्चों के (राज्य के आधार पर) भविष्य को देखते हुए यथा उचित न्याय करते हुए निर्णय लेकर सभी को नागरिकता के आधार पर समानता का अधिकार दें, अन्यथा गैर आदिवासी (दिकु) जनता के क्रोध के कोप का भाजन (चाहे कोई भी षासन हो) न बनना पड़े। जनता भी मतदान का अपना बपौती हक (राज्य सरकार के चुनाव के वक्त) देने के बारे में सोचेगी, कि भोट दें, कि नहीं दें। इस बार किसी की भी दगाबाजी धोकेबाजी (पुरानी हो नयी) नाटकबाजी या दबंगिरि हो या दादागिरि नहीं चल पायेगी।
राष्ट्रपिता बापूजी का घोर अपमान (मतलब) भारत का अपमान:-
दीन दलित ब्यूरो (डायनामाईट):- पूरे भारत वर्ष में राष्ट्रपिता बापू जी की पूजा होती हैं। उनके सत्य और अहिंसा के मार्गदर्षन के रास्ते पर चलते हुए आज हमलोग पूरे भारतवासी अपने देष को स्वतंत्रा देष के रूप में देखने को मिला एवं मेरा भारत देष अंग्रेजी सरकार के गुलामी से आजाद हुआ और