अंक- १०७५ Page-१

गैरीषंकर रजक जी समय से पहले गुजर गए, अपने मुआवजे की आष में।
दीन-दलित ब्यूरो:- यह एक ज्वलंत सबूत है, स्वर्गीय गौरीषंकर रजक जी के घोर तप्स्या का वे एक हस्तलिखित संपादक थे। उन्होंने अपने दीन-दलित सप्ताहिक-पत्रा को एक आन्दोलन के रूप में अपने जीवन काल में सिर्फ अपने बलबूते मतलब अपने खर्च पर चलाये और आज भी दीन दलित (सप्ताहिक पत्रा) हर मंगलवार को निकाला जा रहा है, जिसके चलते उनकी यादें आज भी ताजा है। वे अपने जीवन काल में इस तरह के दर्षित अपनी सहनषत्ति की हद तक अपने 22 (बाईस) की मुआवजे के लिए कई धरना एवं आन्दोलन की लड़ाई लड़े एवं माननीय राष्ट्रपति महोदया प्रतिभा पाटिल से मुआवजे भुगतान यथा षिघ्र कर देने का आदेषित भी करवाये, लेकिन कोई भी फायदा 2007 से आज मई 2013 तक भी नहीं मिला और न ही उनकी पत्नी लखी देवी को उनके राष्ट्रपति महोदया द्वारा आदेषित मुआवजे की राषि मिली।