अंक – १०४१, दिनांक- २०.०८.१२

इन्द्रधनुष सा रंग लिए हमारा भविष्य

सम्पादकीय – आजादी के ६६ वें वर्ष भी प्रतीत  हो रहा है की इन्द्रधनुष सा रंग लिए हमारा भविष्य हमें एक इसे भारत का दर्शन करा रहा है, जिस भारत के हर गावं में हरियाली, हर हाथ को कम, हर व्यक्ति शिक्षित, कहीं कोई बेरोजगार नहीं न भर्ष्टाचार न उग्रवाद न किसी दुसरे देश के आंतकवाद से दर, न कहीं जातिवाद है. न धर्म  के झगडे , चरों दिशाओं में फैली एकता और खुशहाली की मधुर- मधुर खुशबु एक स्वंय सा नजारा और अगले ही पल इन्द्रधनुष का रंग जाता रहा और हमारे सपने भी रेत की घरौंदे की तरह ढह  गये. वही बेरोजगारी, वही अशिक्षा, वही उग्रवाद, वही डरावनी आतकवाद की छाया, वही सफेद कपड़ों में लिपटे गरीब जनता के सपनो को चरने वाले कीड़े, वही गांव की कलि अँधेरी रात, वही गांव में बगैर इलाज के मरता किसान, मजदुर महंगाई की डसती नागिन, पानी बगैर फलती धरती , टकटकी लगाये आसमान को निहारता किसान ऐसे भारत की स्थिति का जिम्मेवार कौन है? क्या हम और आप संघर्ष हीन हो गए हैं. क्या हम अपने दायित्व को समझाते हैं? क्या हम अपने आप को लुटते हुए आँखोंको खोलकर नहीं देखा रहे हैं? क्या हमारे मन और मस्तिष्क को लकवा  मार गया है? या तलाश फिर एक गाँधी की जो हमारे देश में जन्म ले और हमें शोषित करने वालों से आजादी दिलाये. क्या हम नही सुधरेंगे?