अंक- १०७५ Page-८

अब जनता जो भी बिचार करेगी मताधिकार प्रयोग के लिए, बहुत ही सोच समझकर एवं चोकन्ना होकर। कारण उनके मत का प्रयोग मतदान प्रयोग के समय सिर्फ एक बार ही होगा, और उसे 1825 दिन यानि पाँच वर्षों (पंच वर्षिय योजनानुसार) तक उसका दुख तथा असह बेदना झेलना पड़ेगा। अब जनता चुन-चुन कर वादाखिलाफि नेता एवं भोट लेने के बाद वर्षो घुर कर नहीं देखने वाले नेताओं से बदला खुलकर लेगी, कारण मुँह गर्म दूध से एक बार जल जाती है तो छाँछ (खट्टा दही का नमकीन सर्बत) भी फूक-फूक कर पीना पड़ता है, कहीं यह भी दूध जैसा गर्म तो नहींे। क्यों कि जनताओं के जीभ में गर्म दूध पी लेने से जो छाले पड़ चुके, उसे ठीक होने में अभी वक्त लगेगा। क्यूँ फिर जनता रिस्क लेगी दूबारा जीभ में पड़े छाले पर दूबारा और गहरा छाले पड़ने का। अब जनताओं में काफी हिम्मत आ चुकी है, हाँ जीभ के छालों में अभी भी थोड़ा दर्द जरूर है, लेकिन अब दर्द सहने की षक्ति जनताओं को काफी हिम्मती एवं ताकतवर (षक्तिषाली) बना चुकी है। अब जनता हर मुसिबतों का सामना करने के लिए चैकन्ना है, चाहे कोई भी असह से असह मुसिबत क्यूँ न आए। अब जनताओं से भोट प्राप्त करने के लिए नेताओं को तरह-तरह की बेलन बेलने का प्रयोग करना पड़ सकता है। अब काली भैया, पीर-बाबा बाहे गुरू गोविंद सिंह या जाने यीषु मसीह। अब सारा फेसला उपर वाले पर हैं। न दबंगिरि चलेगी न चलेगी नोटों की बंडल चलेगी तो सिर्फ जनताओं के दिल को जीत की। अब वक्त ही बतायेगा अपना फेसला अब दाल नहीं गलने वाली नेताओं की धूर्तनीति की चाल वाली दाल की अब जनताओं की कोई भी दाल चाहे कुर्थी दाल ही क्यों न हो एकदम से पूर्ण रूप से गल जायगी हाँ दाल जनता का होना चाहिए कोई धूर्त या धोकेबाज (बादाखिलाफी) नेता का नहीं।