अंक- १०७४ Page-८

और फिर भी ड्राईवर ने हिम्मत दिखाते हुए यात्रियों को बस से जल्द से जल्द उतरकर सुरक्षित जगहों पर पहुँचाने का निवेदन पर निवेदन करने लगे, जब सारे यात्रिगण बस से उतर गए तो ड्राईवर महोदय बहुत ही राहत महषुष किए तब वे किसी तरह से जल्दी से बस से उतरे, तब तक गाड़ी आग के लपटों से पूर्ण रूप से घिर चुका था। बस में लगे आग की स्थिति ऐसी हो गई कि देखने से बस नजर न आकर आग की गोले के रूप में दर्षित हो रही थी। उस भयानक आग ने अपने आगोस को पूर्ण रूप से निगलने के लिए बेकरार होते हुए बस को राख कर गई। यह क्या कहा जायगा, यह तो एकदम से सत्य स्वरूप कुदरत का करिष्मा कहे या दंड कहें, यह ता माननी ही होगी कि कुदरत कब क्या करिष्मा कर दिखाए या दंड भी किसी को कैसे देगी, यह इंसानों के समझ से बाहर की बात है। इसलिए इन सब बातों पर सोचना भी बेकार है। क्यों हज करने के स्थान पर जनताओं (बस यात्रियों) पर ऐसी आफत आई और उन्हीं भक्तों के दाता साहब के प्रति प्रेम रूपी भावना के दुआ से सभी हज यात्राी लोग एवं ड्राईवर की प्रण रक्षा हुई, लेकिन कुदरत ने अपना करिष्मा दिखा दिया एवं उन सभी हज यात्रियों की हज यात्रा की दाता साहब ने कबूल की।